रँगे सियार आजकल घूमें
रँगे सियार आजकल घूमें
गीत- ✍️उपमेंद्र सक्सेना एडवोकेट
बुद्धि- विवेक जहाँ पर होता
मंगल गीत वहाँ सब गाएँ
अच्छा हो सत्ता की चाबी
यहाँ लोमड़ी जी ही पाएँ।
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छत पर चढ़कर नीचे उतरे
घुसे रसोई के जो अंदर
जो कुछ दिखा झपटकर खाएँ
इतने नटखट होते बंदर
जनता उनसे हुई दु:खी है
वे सब जंगल भेजे जाएँ
अच्छा हो सत्ता की चाबी
यहाँ लोमड़ी जी ही पाएँ।
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सड़कों पर अब साँड मिलेंगे
बने आज वे हैं हत्यारे
कपड़े लाल पहनकर निकला
मार दिया था राम दुलारे
जिस दिन अपनी यहाँ चलेगी
उनसे छुटकारा दिलवाएँ
अच्छा हो सत्ता की चाबी
यहाँ लोमड़ी जी ही पाएँ।
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गलियाँ जब कुरुभूमि लगेंगी
भोला- भाला नहीं बचेगा
संरक्षक धृत राष्ट्र बनेंगे
कुत्तों का आतंक मचेगा
पिल्लों की माताएँ इतनी
हुईं कटखनी सब घबराएँ
अच्छा हो सत्ता की चाबी
यहाँ लोमड़ी जी ही पाएँ।
🌹🌹
नहीं शहर से हटीं डेयरी
भैंसें करतीं खूब तांडव
दुर्घटनाएँ खूब बढ़ी हैं
चोटिल कितने हुए पांडव
तेल पड़ा जिनके कानों में
उनको हम कैसे समझाएँ,
अच्छा हो सत्ता की चाबी
यहाँ लोमड़ी जी ही पाएँ।
🌹🌹
चीते का अब ओढ़ लबादा
रँगे सियार आजकल घूमें
नियम वसूली का है उनका
धन- दौलत पाकर वे झूमें
धूमिल हुई सत्य-निष्ठा को
चलो आज फिर से पनपाएँ
अच्छा हो सत्ता की चाबी
यहाँ लोमड़ी जी ही पाएँ।
🌹🌹
रचनाकार ✍️उपमेंद्र सक्सेना एडवोकेट
'कुमुद- निवास', बरेली (उत्तर प्रदेश)
मोबा.- 98379 44187
Gunjan Kamal
08-Oct-2023 08:49 AM
👏👌
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kashish
08-Oct-2023 06:34 AM
Nice
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Mohammed urooj khan
07-Oct-2023 11:25 PM
👌👌👌
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